Home ब्रह्मांड Jupiter हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह।

Jupiter हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह।

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चित्र 1: अपने चंद्रमा के साथ बृहस्पति ग्रह का एक कलात्मक चित्रण। | बृहस्पति में रंगीन बादल बैंड और स्थानों का एक सुंदर टेपेस्ट्री है।

1979 मे Voyager Spacecrafts ने सबसे पहले Jupiter यानि बृहस्पति ग्रह का नज़दीक से तस्वीर लिया था। जिससे हमें बृहस्पति ग्रह के बारे मे बहुत कुछ पता चला। फिर 1989 मे galelio spacecraft से हमें बृहस्पति के वातावरण, chemical composition, इसके चन्द्रमा, rings, gravity, magnetic field और इसके patterns के बारे मे पता चला। galelio spacecraft के बाद 2011 मे Juno spacecraft से हमें इसके core मे क्या है, और वास्तव में इसका कोई सॉलिड सरफेस है या नही यह पता चला साथ ही यह भी पता चला कि बृहस्पति गैस का एक विशालकाय ग्रह है । चलिए जानतें हैं कि “क्या बृहस्पति एक असफल तारा है”? और क्या इसका कोई सॉलिड सरफेस हैं, या नहीं?

क्या बृहस्पति एक असफल तारा है?

Jupiter यानि बृहस्पति ग्रह के प्रारंभिक शोध

1979 में जब Voyager Spacecraft ने सबसे पहले Jupiter यानी बृहस्पति ग्रह का नजदीक से तस्वीर लिया था. तब से ही वैज्ञानिक बृहस्पति के बारे में सब कुछ जानने के लिए और भी जिज्ञासु हो गए। इसलिए 1989 में बृहस्पति ग्रह को और भी पास से जानने के लिए NASA द्वारा galelio spacecraft भेजा गया, जिससे हमें बृहस्पति के बारे में बहुत कुछ पता चल रहा था, लेकिन मिशन फेल होने के कारण हम बृहस्पति के सतह और कोर के बारे मे नहीं जान पाए।

वैज्ञानिक जानना चाहते थे कि बृहस्पति पर पृथ्वी की तरह कोई solid surface है या यह केवल गैस का एक विशालकाय ग्रह है। इसे जानने के लिए 2011 में Juno spacecraft भेजा गया, Juno spacecraft द्वारा जमा किए गए डाटा से हमें यह पता चला कि बृहस्पति का असल में कोई सॉलिड सरफेस है ही नहीं। इस मिशन द्वारा जमा किए गए डाटा से साबित हो गया कि बृहस्पति गैस का एक विशालकाय ग्रह है, और इसके chemical composition हमारे सूर्य के समान है।

रासायनिक संरचना

Sun's Chemical Composition
Sun’s Chemical Composition Chart
Jupiter’s Chemical Composition Chart

अब क्योंकि इसका chemical composition हमारे सूर्य या यूं कहें एक तारे के समान है, तो हम बृहस्पति को एक असफल तारा कह सकते हैं। चलिए इसे और विस्तार से जानते हैं, Juno spacecraft द्वारा जमा किए गए डाटा से हमें यह पता चला कि बृहस्पति दूसरे तारों की तरह ज्यादातर hydrogen और helium से बना है, और बहुत ही कम heavier elements से। इसका यह अर्थ है कि बृहस्पति का chemical composition एक तारे के समान तो है, लेकिन यह एक तारे के समान इतना भारी नहीं कि इसमें fusion हो सके और यह लाइट रेडिएट कर सके।

सौरमंडल में सबसे बड़ा ग्रह

बृहस्पति हमारे सौरमंडल में सबसे बड़ा और सबसे पुराना ग्रह है, जिसके आधुनिक शोध से वैज्ञानिक यह दावा करते हैं कि इसका निर्माण सूर्य के निर्माण से लगभग 40 लाख साल बाद ही हो गया था, इसलिए बृहस्पति के सूर्य के समान संरचना ग्रहों के बारे में हमें बहुत कुछ बताती है, जैसे हमारे सौरमंडल में सूर्य के निर्माण के बाद ग्रह कैसे बने।

solar system का निर्माण

वैज्ञानिकों के अनुसार जब एक तारा बनता है, तो इसके आसपास के सभी गैस और धूल एक डिस्क बन कर तारे के चारों ओर घूमने लगते हैं, इस डिस्क को solar nebula कहते हैं। जैसे ही धूल और गैस के विशाल बादल तारे के चारों ओर घूमना शुरू करते हैं तो, gravity के कारण सारे भारी एलिमेंट तारे के पास आ जाते हैं, और हल्के एलिमेंट्स दूर हो जाते हैं, gravity के कारण ही सारे एलिमेंट्स आपस में टकराकर ग्रह बनाते हैं, जिसमें भारी एलिमेंट्स से सॉलिड ग्रह बनते हैं और हल्के एलिमेंट से गैस वाले ग्रह बनते हैं।

बृहस्पति का निर्माण

बृहस्पति भी ऐसे ही हल्के एलिमेंट्स के कोलैप्स होने से बना है। लेकिन बृहस्पति पूरी तरह से तारा भी बन सकता था, या पूरी तरह से ग्रह, या कुछ अलग। उदाहरण के लिए हमारे मिल्की वे गैलेक्सी में कई ऐसी वस्तुएं हैं जो बृहस्पति के समान हैं, उनका केमिकल कंपोजिशन भी सामान है इन वस्तुओं को Brown Dwarf कहते हैं। ये वस्तुएं बहुत अद्भुत प्रतीत होती है।

Brown Dwarf इसके जैसी वस्तुएं या बृहस्पति सभी एक समान दिखते हैं, इसलिए इन्हें स्टार लाइट ऑब्जेक्ट्स के रूप में माना जाना चाहिए, एक ग्रह के रूप में नहीं, हालांकि एस्ट्रोनॉमर्स के बीच इस बात के बहुत सारे तर्क हैं, क्योंकि वह अभी तक यह निश्चित नहीं कर पाए हैं, कि बृहस्पति के लिए किस नाम का उपयोग किया जाए। वे अभी भी निश्चय नहीं कर पाए हैं, कि इन्हें असफल तारा कहा जाए या ग्रह।

हर ग्रह को इसके mass केमिकल कंपोजीशन और एलिमेंट्स द्वारा परिभाषित किया जाता है, और कम से कम इसे एक वस्तु या mass कहकर बताया जाता है, जो किसी तारे का चक्कर लगाता है। इसलिए बृहस्पति बहुत अधिक वस्तु है, जो nuclear fusion नहीं कर सकता। इसलिए हम इसे पूर्ण रूप से ना तो गृह कह सकते हैं, और ना ही तारा। लेकिन जैसे जैसे वैज्ञानिक बृहस्पति और इसके समान ग्रहों को और अच्छे से जानते जाएंगे, हम ब्रह्मांड को और भी बारीकी से समझ पाएंगे, और बृहस्पति जैसी वस्तुओं को अच्छे से समझ पाएंगे।

बृहस्पति के exploration और observation

बृहस्पति के exploration और observation के लिए, अब तक 9 spacecraft भेजे जा चुके हैं। जिनमें चार Flyby spacecraft, 3 gravity assist और 2 orbitor शामिल हैं।

Pioneer spacecraft

बृहस्पति के observation के लिए 1972 में सबसे पहले Pioneer 10 spacecraft भेजा गया। जिसका मिशन था बृहस्पति का तस्वीर लेना और उसके magnetic field को observe करना, फिर अपने दूसरे मिशन में आगे बढ़ जाना। ठीक इसी प्रकार 1973 में Pioneer 11 लॉन्च किया गया जिसका मिशन था, बृहस्पति के asteroid belt और उसके आसपास के वातावरण को observe करना फिर शनि ग्रह और cosmic rays को observe करने के लिए आगे बढ़ जाना। Pioneer मिशंस की सहायता से हम बृहस्पति के बारे में बहुत कुछ जान पाए जिसमें सबसे बड़ी खोज बृहस्पति का magnetosphere है।

Voyager Spacecraft

फिर 1979 में Voyager 1 और Voyager 2 भेजे गए बृहस्पति के ring system और इसके चन्द्रमा IO और Europa के observation के लिए।

Ulysses Spacecraft

Pioneer और Voyager मिशन के बाद बृहस्पति के gravity और atmosphere की डिटेल स्टडी के लिए 1992 में Ulysses Spacecraft नासा द्वारा भेजा गया।

Cassini और New Horizons

उसके बाद 2000 में Cassini spacecraft फिर 2007 में New Horizons spacecraft भेजे गए Pioneer 10, 11 Voyager 1, 2, Ulysses, Cassini और New Horizons इन सभी spacecraft की सहायता से हमने बृहस्पति के बाहरी वातावरण, gravity और magnetosphere को जान पाए।

Galileo Spacecraft

बृहस्पति को 1968 में प्रकाशित प्लेनेटरी साइंस डिकेडल सर्वे में नंबर एक प्राथमिकता में रखा गया था। इसलिए Voyager मिशन के बाद से ही वैज्ञानिक बृहस्पति के लिए बहुत जिज्ञासु थे वे जानना चाहते थे कि, बृहस्पति के अंदर का वातावरण कैसा है और क्या बृहस्पति का कोई solid surface है या नहीं।

जिसे जानने के लिए 1989 में Galileo spacecraft भेजा गया, 1995 तक Galileo अपने 6 वर्षों की यात्रा के बाद हमसे 58 करोड़ 80 लाख किलोमीटर दूर स्थित बृहस्पति के ऑर्बिट में पहुंच चुका था Galileo spacecraft के दो भाग थे पहला jupiter atmospheric probe यानी lander जिसे बृहस्पति के अंदर जाना था, और दूसरा भाग orbitor जिसे बृहस्पति के orbit में रहकर lander द्वारा जमा की गई डाटा को पृथ्वी पर पहुंचाना था।

lander को बृहस्पति के magnetic field तथा gravity को पास से स्टडी करना था। और इस प्रकार 7 दिसंबर 1995 को टाइटेनियम से बना jupiter atmospheric probe यानि lander, Galileo spacecraft से डिटैच हुआ और कुछ ही समय में बृहस्पति के अंदर दाखिल हो गया लगभग एक लाख 62 हज़ार प्रति घंटे की तेजी से बृहस्पति का शक्तिशाली gravity, lander को खींच रहा था। लेकिन वैज्ञानिकों ने lander के स्पीड को कम करने के लिए इस पर लगे पैराशूट को खोल दिया पैराशूट खुलने के कुछ समय बाद यह बृहस्पति के atmosphere में पहुंच चुका था। जहां से यह सभी जानकारियों को लगातार orbiter पर भेज रहा था, और orbiter उस डाटा को पृथ्वी पर। lander और orbiter द्वारा हमें ऐसी जानकारियां प्राप्त हो रही थी जिनके बारे में हम पहले नहीं जानते थे।

बृहस्पति का वातावरण

बृहस्पति के सबसे ऊपरी वातावरण में पहुंचने के बाद हमें पता चला कि, बृहस्पति का ऊपरी वातावरण पृथ्वी के वातावरण जैसा नहीं है, बल्कि घने बादलों से भरा है। बादल जो कि अलग-अलग आकार के हैं। यहां का वातावरण एक घने धुएं के चेंबर जैसा है जो कि वास्तव में बहुत ही अजीब दिखता है। बृहस्पति के बादल अमोनिया हाइड्रोजन सल्फाइड और पानी से मिलकर बना है।
पानी के होने से हमें यह भी पता चला कि बृहस्पति पर वर्षा भी होती है, लेकिन थोड़े नीचे जाते ही तापमान इतना ज्यादा है कि बारिश का पानी भाप बन जाता है, और सतह तक जा ही नहीं पाता इस घने बादलों के बाद थोड़ी गहराई में जाते ही ऊपरी बादल खत्म हो जाते हैं, और एक खाली आकाश आता है, इस स्थान पर हमें यह पता चला कि बृहस्पति के गहराई में तापमान और दबाव बढ़ता रहता है, जितनी गहराई उतनी ही अधिक तापमान और दबाव।

इस खाली आकाश में ही बारिश का ज्यादातर पानी भाप बनकर फिर से ऊपरी वातावरण में चला जाता है लगभग 156 किलोमीटर गहराई तक जाने के बाद भी lander को कोई सॉलिड सरफेस नहीं मिला करीब 160 किलोमीटर गहराई में जाने के बाद तापमान इतना बढ़ गया कि orbiter से lander का कंट्रोल छूट गया। सिगनल्स बंद होने के बाद असहन तापमान और दबाव के कारण lander पिघल कर भाप बन गया।

हालांकि lander इससे ज्यादा गहराई में नहीं जा पाया लेकिन फिर भी इसने बृहस्पति के वातावरण के बारे में हमें बहुत कुछ बताया Galileo मिशन से हमें यह भी पता चला कि बृहस्पति के रिंग सिस्टम इसी के चार चंद्रमा के टकराव के धूल से बना है। साथ ही बृहस्पति के magnetospere को और बेहतर तरीके से समझने में हमारी सहायता की। 14 साल अंतरिक्ष और 8 साल जोवीयन system में रहने के बाद Galileo के orbiter को बृहस्पति के वायुमंडल में भेज कर नष्ट कर दिया गया ताकि पृथ्वी से इस पर गए बैक्टीरिया से बृहस्पति के चंद्रमा दूषित ना हो।

Juno Spacecraft

Galileo मिशन के बाद वैज्ञानिकों को इस से भी अधिक जानना था, हम अभी तक यह नहीं जान पाए थे कि बृहस्पति पर कोई सॉलिड सरफेस है या नहीं इसलिए 2011 को लांच किया गया Juno Spacecraft जिसका मुख्य काम था बृहस्पति के composition, gravity fields, magnetic fields, polar magnetic fields और core को स्टडी करना। 5 जुलाई 2016 को Juno Spacecraft बृहस्पति के orbit में सफलतापूर्वक पहुंच चुका था। Juno Spacecraft की सहायता से हमने बृहस्पति को और भी पास से जाना, Juno में Galileo की तरह कोई भी लेंडर नहीं लगाया गया था इसे बस बृहस्पति के ऑर्बिट में रहकर बृहस्पति को स्टडी करना है।

बृहस्पति का liquid core

Juno के द्वारा भेजे गए डाटा से हमें पता चला कि बृहस्पति का असल में कोई सॉलिड सरफेस है ही नहीं, बल्कि इसके बीच में एक liquid core है, जिसका तापमान करीब 9700 डिग्री सेल्सियस है। यहां का दबाव इतना अधिक है, कि हाइड्रोजन के एटम्स नॉर्मल से अलग लिक्विड अवस्था में बदल जाते हैं जिसे metallic hydrogen कहते हैं।

हाइड्रोजन का यह रूप एक इलेक्ट्रिक कंडक्टर की तरह काम करता है, इसलिए इस liquid core के कारण ही बृहस्पति का विशाल magnetosphere बनता है। Juno ने यह साबित कर दिया कि बृहस्पति गैस का एक विशालकाय ग्रह है, जिसका केमिकल कंपोजिशन किसी तारे के समान है, बृहस्पति के केमिकल कंपोजिशन किसी तारे के समान होने से कुछ वैज्ञानिक यह मानने लगे हैं कि बृहस्पति असल में एक असफल तारा है। Juno अभी भी बृहस्पति के orbit में रहकर लगातार बृहस्पति को स्टडी कर रहा है।

बृहस्पति के भविष्य के मिशन

बृहस्पति के बारे में इतना सब कुछ जानने के बाद भी वैज्ञानिक मानते हैं, कि हमें अभी भी बृहस्पति के बारे में बहुत कुछ जानना बाकी है। इसलिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने अपने कॉस्मिक विजन प्रोग्राम के हिस्से के रूप में L1 श्रेणी के जूस मिशन को बृहस्पति के गैलीलियन चंद्रमाओं का पता लगाने के लिए चुना है, जिसमें रोस्कॉसमॉस द्वारा प्रदान मिशन को 2022 में लॉन्च करने का प्रस्ताव है। इसी प्रकार ISRO भी 2022 या 2023 में जियोसिंक्रोनस सैटलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क 3 के माध्यम से बृहस्पति के लिए पहला भारतीय मिशन लॉन्च करेगा। बहुत दिनों से रुके और एक सब ऑर्बिटल टेस्ट उड़ान के बाद इसरो ने सतीश धवन स्पेस सेंटर से 5 जून 2017 को जियोसिंक्रोनस सैटलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क 3 यानी gslv-3 का पहला ऑर्बिटल टेस्ट लॉन्च सफलतापूर्वक किया। 2022 में गगनयान नामक low earth आर्बिट स्पेसक्राफ्ट द्वारा मानव को स्पेस में भेजा जाएगा और इस मिशन में जीएसएलवी 3 रॉकेट का उपयोग किया जाएगा।


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